मुक्ति (फ्रीडम) 1937 की भारतीय ड्रामा फिल्म है, जो प्रमथेश बरुआ द्वारा निर्देशित और न्यू थिएटर्स द्वारा निर्मित है। यह फिल्म हिंदी और बंगाली दोनों भाषाओं में बनाई गई थी, जिसमें बरुआ ने दोनों संस्करणों में मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म में कानन देवी, पंकज मलिक, मेनका देवी और अमर मलिक भी प्रमुख भूमिकाओं में थे। यह फिल्म सजनीकांत दास के इसी नाम के एक नाटक पर आधारित थी, और इसमें पंकज मलिक द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। इस फिल्म की शूटिंग बिमल रॉय ने की थी, जो बाद में खुद एक मशहूर निर्देशक बने।

स्टोरी लाइन
फिल्म प्रशांत (बरुआ) की कहानी बताती है, जो एक प्रतिभाशाली कलाकार है जो अपनी कला के प्रति समर्पित है। वह नग्न महिला रूपों को चित्रित करता है, जो रूढ़िवादी समाज को नामंजूर होता है। उसका विवाह जल्द ही एक अमीर लड़की चित्रा (कानन देवी) के साथ होता है, मगर उसका ससुर (अहि सान्याल) उनके पेशे को नापसंद करता है और यह चाहता है कि वह यह सब कुछ छोड़ दे। प्रशांत और चित्रा एक दूसरे से बहुत प्यार करते है, लेकिन दोनों एक दूसरे की जीवनशैली और व्यवहार के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ है। वह उसके द्वारा उपेक्षित भी महसूस करती है, क्योंकि वह उसके साथ की तुलना में अपनी कला के साथ अधिक समय बिताता है। आख़िरकार, उनकी शादी टूट जाती है और दोनों का तलाक हो जाता है।
प्रशांत असम के जंगलों में जाता है, जहां उसकी मुलाकात झरना (मेनका देवी) से होती है, जो पहाड़ी (पंकज मलिक) नाम के एक सराय मालिक की पत्नी है। वह एक जंगली हाथी के बच्चे से भी दोस्ती करता है, जिसका नाम वह मुक्ति रखता है। उसे झरना और मुक्ति की संगति में शांति और खुशी मिलती है और वह पेंटिंग करना जारी रखता है। वह एक स्थानीय व्यापारी (जगदीश सेठी/अमर मलिक) को भी अपना दुश्मन बना लेता है, जो झरना को चाहता है।
चित्रा एक अमीर आदमी बिपुल (बिक्रम कपूर) से शादी करती है जो उसे हाथी के शिकार पर ले जाता है। वे अंततः मुक्ति की हत्या कर देते हैं, जो प्रशांत को तबाह कर देता है। चित्रा को पता चलता है कि प्रशांत जीवित है, और उससे मिलने जाती है। उसे एहसास होता है कि वह अब भी उससे प्यार करती है, और उससे माफ़ी मांगती है। प्रशांत उसे माफ कर देता है, लेकिन उसे बिपुल के पास वापस जाने के लिए कहता है। वह उसे उस व्यापारी के चंगुल से भी बचाता है, जो उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में प्रशांत की मृत्यु हो जाती है, जिससे चित्रा का दिल टूट जाता है। लेकिन आख़िरकार उन दोनों को अपने बदकिस्मत प्यार से मुक्ति मिल जाती है।

यह फिल्म प्रेम और कला की एक मार्मिक कहानी है, जो जुनून, बलिदान, स्वतंत्रता और नियति के विषयों को दर्शाती है। यह फिल्म बरुआ की कलात्मक दृष्टि और प्रतिभा को प्रदर्शित करती है, जिन्होंने न केवल फिल्म का निर्देशन और अभिनय किया, बल्कि पटकथा और संवाद भी लिखे हैं। यह फिल्म पात्रों और उनकी भावनाओं के यथार्थवादी और प्राकृतिक चित्रण के लिए भी उल्लेखनीय है, जो उस समय के भारतीय सिनेमा में दुर्लभ था। फिल्म में कुछ यादगार गाने भी हैं, जैसे “दुखेर नोडी”, “ई कथती मोने रेखो” और “जीवन बीन मधुर ना बाजे”, जो मलिक द्वारा रचित और उनके और कानन देवी द्वारा गाए गए हैं।
यह फ़िल्म व्यावसायिक रूप से बहुत सफल रही और इसने बॉक्स ऑफिस पर 7,48,200 की कमाई की। यह फिल्म भारतीय सिनेमा की उत्कृष्ट कृतियों में से एक मानी जाती है और बरुआ और कानन देवी के करियर में एक मील का पत्थर मानी जाती है, जो आगे चलकर बंगाली सिनेमा में महान अभिनेता और निर्देशक बने।
मुक्ति एक क्लासिक फिल्म है जो बंगाल और भारत की भावना और संस्कृति को दर्शाती है। यह एक ऐसी फिल्म है जो अपनी सदाबहार कहानी और किरदारों से दर्शकों को प्रेरित और मनोरंजन करती है।