अशोक कुमार को दादामोनी नाम से भी जाना जाता है और वह एक ऐसे एक भारतीय फिल्म अभिनेता थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में प्रतिष्ठित दर्जा प्राप्त किया और भारत सरकार द्वारा सिनेमा कलाकारों के लिए सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार के साथ उन्हें 1988 में सम्मानित किया गया था और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए 1999 में पद्म भूषण भी मिला था।
भारतीय सिनेमा के दादामोनी को भारत के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं में से एक माना जाता है और उन्होंने विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में अपने हुनर से विश्व में सभी के दिलों में भारतीय सिनेमा को एक पहचान दी है। गांगुली खानदान के बेटे अशोक कुमार का जन्म 1911 में हुआ था।
Early Life – अशोक कुमार का बचपन का और असली नाम कुमुदलाल गांगुली था जो उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद अशोक कुमार के रूप में बदल लिया था। कुमुदलाल गांगुली का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर में हुआ था और उनके पिता कुंजलाल गांगुली एक वकील थे और उनकी माता गौरी देवी, एक ग्रहणी थी। कुमुदलाल अपने चार भाई – बहनो में सबसे बड़े थे और उनकी बहन सती देवी का विवाह बहुत कम उम्र में शशधर मुखर्जी से हो गया था और वे एक बड़े फ़िल्मी परिवार से ताल्लुक रखते थे और वहीँ से कुमुदलाल का नाता फ़िल्मी दुनिया से होना शुरू हुआ।
कुमुदलाल गांगुली ने अपनी शिक्षा कोलकाता के कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त की और उन्होंने वहां पर वकील बनने के लिए अध्ययन किया। मगर उनका दिल उनके कानून की पढ़ाई में नहीं लगता था क्योंकि कुमुदलाल को सिनेमा में अधिक रुचि रही थी।
Professional Life – कुमुदलाल के पिता चाहते थे कि वह वकील बने और इसी वजह से उन्हें लॉ कॉलेज में दाखिला दिलाया था मगर कुमुदलाल का मन ना होने की वजह से वह परीक्षा में फेल हो गए और परिवार के गुस्से से बचने के लिए वह अपनी बहन के पास मुंबई चले गए। कुमुदलाल की बहन सती देवी का घर मुंबई के चेंबूर में था और उनके पति बॉम्बे टॉकीज के तकनीकी विभाग में काफी वरिष्ठ पद पर कार्यरत थे।
कुछ समय बाद अशोक कुमार को बॉम्बे टॉकीज़ में लेबोरटरी असिस्टेंट की नौकरी मिल गयी और यह नौकरी पाकर वह बहुत खुश थे क्योकि इसी रस्ते से उन्हें उनकी मंज़िल मिलने वाली थी। उनके अभिनय की शुरुवात अचानक हुयी एक घटना से हुयी। 1936 में जब जीवन नैया की शूटिंग चल रही थी बॉम्बे टॉकीज़ में, तब फिल्म के मुख्य किरदार नजम-उल-हसन के साथ एक हादसा हो गया जिसकी वजह से उन्हें फिल्म करने का अवसर नहीं मिला।
उसी समय निर्माता की नज़र कुमुदलाल पर पड़ी और उन्हें अपनी अधूरी फिल्म को पूरा करने के लिए जिस युवा की जरुरत थी वह उन्हें मिल गया था, कुमुदलाल ने भी बिना सोचे यह मौका हाथ में ले लिए और अपने अभिनय से इस फिल्म को लोकप्रिय बनाया और इसी फिल्म के साथ कुमुदलाल को अशोक कुमार का नाम भी मिला। करीबन 6 दशक तक अशोक कुमार ने एक से बढ़कर एक सुपरहिट फ़िल्में दी।
अशोक कुमार को नॉवेल पढ़ने का शौक बचपन से ही था और यह शौक फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी बरक़रार रहा, जब भी उनको समय मिलता वह पढ़ना शुरू कर देते थे।
Awards – अपने 6 दशक के करियर में अशोक कुमार ने कई सारे अवॉर्ड्स जीते। 1962 में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए अपनी फिल्म राखी के लिए , 1963 में बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन – सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (हिंदी), गुमराह फिल्म के लिए, 1966 में फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड बेस्ट सपोर्ट एक्टर के लिए अफसाना फिल्म में ,1969 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार आशीर्वाद फिल्म के लिए , 1988 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार, सिनेमाई उत्कृष्टता के लिए भारत का सर्वोच्च पुरस्कार,1994 में अशोक कुमार को स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला और 1995 में उनको फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ा गया।
Films – “जीवन नैया (1936)”, ” अछूत कन्या (1936)”, “जन्मभूमि (1936)”, “बंधन (1939)”, “किस्मत (1943)”, “महल (1949)”, “परिणीता (1953)”, “भाई भाई (1956)”, ” चलती का नाम गाड़ी (1958)”, “हवड़ा ब्रिज (1958)”, “गुमराह (1963)”, “चित्रलेखा (1964)”, “छोटी सी बात (1975)”, “मिली (1975 )”, “खट्टा मीठा ( 1978)”, “ज्वेल थीफ (1967)”, “शौकीन (1982)”, “भागो भूत आया (1985)”, “मिस्टर इंडिया (1987)”, “ग्रहस्ती (1963)”, “धर्मपुत्र (1961 )”, ” कानून (1960)”, “अंजान (1941)”, “मेरा दामाद (1995)”,
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