कभी सोचा है? आखिरी सीन खत्म होता है, थिएटर की लाइट्स जलती हैं, और आप उठकर चलने लगते हैं... पर...
Read moreहर किसी की नजर में फिल्म सिर्फ एक मनोरंजन का माध्यम है — कहीं रोना, कहीं हँसी, कहीं रोमांच और...
Read moreहर चमकदमक के पीछे एक अनदेखी और अनकही कहानी होती है – वह कहानी, जो आमतौर पर लाइमलाइट से कोसों...
Read moreजीवन की राहें आसान नहीं होतीं। अक्सर हम मेहनत करते हैं, जी-जान लगाते हैं, लेकिन परिणाम हमारे मन मुताबिक नहीं...
Read moreआज जब हम 'अवतार' में नीले नावी जाति को पंडोरा के जंगलों में उड़ते देखते हैं, या 'जंगल बुक' में...
Read moreसोचिए एक पल। 1950 का दशक। एक विशाल सिनेमा हॉल। पर्दे पर क्लार्क गेबल अपनी विद्युत चुम्बकीय मुस्कान बिखेर रहे...
Read moreहम सबने देखा है वो पल। सिनेमा हॉल की अँधेरी कोख में, टीवी स्क्रीन की रोशनी में, या फिर मोबाइल...
Read moreसुबह के चार बजे। बंबई के दादर इलाके में एक मकान के बाहर बैलगाड़ी रुकी। ड्राइवर ने ढेर सारे लकड़ी...
Read more1930s... का वो दशक, जब बॉलीवुड "बॉलीवुड" नहीं, "हिंदी सिनेमा" था। चमक-दमक नहीं, संघर्ष था। पर्दे पर जादू दिखता था,...
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© 2020 Movie Nurture
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