Kala Pani – अपनों के लिए किये गए संघर्ष की कहानी

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जब जीवन हमें कुछ पहलुओं से रूबरू करवाती है तो बहुत सारे संघर्ष करने पड़ते हैं उनसे निकलने के लिए। मगर जब बात अपनों की आती है तो हम कुछ भी कर जाते हैं अपनों को सुरक्षित रखने के लिए।

यही सब कुछ हिंदी सिनेमा की एक फिल्म “काला पानी “ में दिखाया गया है।  यह फिल्म 1958 में रिलीज़ हुयी थी, यह एक बंगाली ” Sabar Upaarey (সবার উপরে)” फिल्म का रीमेक है, जो कि एक नॉवेल ” Beyond This Place” पर आधारित है। इस फिल्म का निर्देशन राज खोसला ने किया था।  

Story 

फिल्म की कहानी शुरू होती है करण एक युवा लड़के से जिसको पता चलता है कि उसके पिता  शंकर लाल क़त्ल के जुर्म  में जेल में हैं और बचपन से उसकी माँ उसके पिता को मृत बताती रही।  यह जानकर करण अपने पिता से मिलने जेल जाता है और यह जानकर उसको आश्चर्य होता है कि उसके पिता वह सज़ा भुगत रहे हैं जो उन्होंने कभी किया ही नहीं, मतलब वह क़त्ल उन्होंने किया ही नहीं था, उनको फसाया गया है।

 यह जानकर करण निर्णय करता है कि वह इस बंद केस को फिर से खुलवाएगा और अपने पिता की बेगुनाही साबित भी करेगा। उसको अपने पिता द्वारा एक गवाह के बारे में पता चलता है। उस गवाह से मिलकर करण को एक इंस्पेक्टर मेहता के बारे में पता चलता है, जो इस केस पर काम कर रहे थे। 

करण मेहता से मिलने शहर जाता है जहाँ वह एक घर में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहने लगता है और उस घर की मालकिन आशा होती है जो कि एक बड़े से अखबार में पत्रकार भी है। करण मेहता से मिलता है और वह दो और अहम् गवाहों  किशोरी और जुम्मन के बारे में बताता है जिनके पास कुछ डॉक्यूमेंट हैं जो कि करण के पिता की बेगुनाही का सबूत हैं। मगर उन्होंने अदालत में वह नहीं दिखाए क्योकि वह दोनों जसवंत राय द्वारा चुप कराये जा चुके थे।

करण किशोरी से वो डाक्यूमेंट्स लेने के लिए उस के साथ प्यार का नाटक करता है और वहीँ दूसरी तरफ करण और आशा भी एक दूसरे से सच्चा प्यार करने लगते हैं। करण का दूसरा टारगेट जसवंत राय होता है और वह उससे मिलता है और यह जानने की कोशिश करता है कि वह इन कड़ियों से कैसे जुड़ा हुआ है। उधर जसवंत राय को पता चलता है कि करण किशोरी से मिलता है तो वह जुम्मन के द्वारा किशोरी को धमकाने की भी कोशिश की जाती है।

जब किशोरी को उसके प्यार के नाटक के बारे में पता चलता है तो वह बहुत दुखी होती है और करण से यह करने की वजह पूछती है, करण अपने आने का मकसद बता देता है और किशोरी उसको एक पत्र देती है। धीरे – धीरे परतें खुलती जाती हैं और करण को यह पता चलता है कि जो पत्र किशोरी ने दिया था वह वो पत्र था ही नहीं जिससे उसके पिता की बेगुनाही साबित हो सके।

आशा अपने अखबार में इस केस के बारे में लिखकर करण की मदद करना चाहती है मगर उसका संपादक ऐसा करने से मना कर देता है। करण बहुत परेशां हो जाता है तभी किशोरी बेगुनाही का असली पत्र  करण को देती है।

करण अपने पिता का केस फिर से खोलता है और सभी सबूतों के साथ अदालत में जसवंत राय अपना गुनाह कबूल करता है और किशोरी और जुम्मन भी सच्चाई को छुपाने का गुनाह कबूलते हैं।  करण के पिता जेल से रिहा हो जाते हैं।

Songs & Cast – इस फिल्म में बेहद प्रसिद्ध गाने हैं जो आज  तक भी गुनगुनाये जाते हैं – ” अच्छा जी में हारी  चलो मान जाओ ना “, ” दिलवाले अब तेरी गली तक आ पहुंचे “, “जब नाम -ऐ – मोहब्बत लेकर “, ” हम बेखुदी में तुम्हें पुकारे चले गए ” इन सभी गानो को मोहम्मद रफ़ी  और आशा भोंसले ने गाया था। 

इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में देव आनंद ( करण ), मधुबाला ( आशा ), नलिनी जयवंत ( किशोरी ) ,नासिर हुसैन (जुम्मन ),कृष्ण धवन ( इंस्पेक्टर मेहता ) और किशोर साहू ( जसवंत राय ) आदि अन्य ने बड़ी ही सहजता से अपने अभिनय को उजागर किया है।

1959 में इस फिल्म को दो केटेगरी में फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला है  – एक तो देव आनंद को बेस्ट एक्टर के लिए और दूसरा नलिनी जयवंत को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए।

यह फिल्म नवकेतन फिल्म्स प्रोडक्शन कंपनी द्वारा निर्मित की गयी थी। यह एक सुपर हिट ब्लैक एंड वाइट फिल्म है और इस फिल्म की अवधि 2 घंटे 44 मिनट है।

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