Ratha Kanneer (ரத்தக்கண்ணீர்) – सुपर हिट तमिल फिल्म

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हम सभी के जीवन में आदर्श और वेल्यूस होने चाहिए। जिंदगी सिर्फ जीने का नाम नहीं है यह एक अहसास है जिसे हम जीते हैं और दूसरों को इस अहसास से परिचित भी करवाते हैं और जिसके जीवन में यह सब ना हो तो उसका जीवन होता ही नहीं है वह पूरी उम्र मृत मात्र ही रहता है।

Ratha Kanneer (ரத்தக்கண்ணீர்) एक तमिल फिल्म है और जिसका इंग्लिश में अर्थ  “Tears of Blood “होता है। यह फिल्म 6 नवम्बर 1954 को दक्षिण भारत में रिलीज़ हुयी थी इस फिल्म का निर्देशन आर कृष्णनन और एस पांजू ने किया था। यह फिल्म कन्नड़ भाषा में भी बनी  है,Raktha Kanneeru के नाम से।  

Story 

फिल्म की कहानी शुरू होती है संपन्न व्यक्ति बालू से, जो एक आदमी की मूर्ति के पास खड़े होकर जनता को सम्बोदित कर रहा है। यह मूर्ति बालू के बहुत अच्छे मित्र मोहन सुंदरम की है। उसके बादफिल्म फलेश बेक में चली जाती है, जहाँ पर मोहनसुन्दरम एक बहुत अमीर आदमी है और वह किसी का भी सम्मान और आदर नहीं करता है।

वह सभी को अपने बहुत कम और नीचा समझता है। इतना ही नहीं मोहन अपनी माता की भी पिटाई करता रहता है।  उसको यह लगता है कि वह पैसे से सब कुछ खरीद सकता है। मोहन भारत आता है और उसका विवाह चंद्रा नामक  सुसंस्कृत, सुशील और सरल व्यवहार वाली एक गांव की लड़की से होता है।  मोहन चंद्रा को बिलकुल भी पसंद नहीं करता है और उससे दूरी बनाये रखता है।  वहीँ दूसरी तरफ मोहन एक तवायफ़ कांता के प्रेम में पूरी तरह से गिरफ्त हो जाता है।

बालू मोहन को बहुत समझाता है उसके व्यवहार के लिए और कांता से दूरी बनाने के लिए भी मगर मोहन को माया का ऐसा नशा होता है कि उसको कुछ भी समझ नहीं आता। जब मोहन की माँ का देहांत हो जाता है तो भी वह नहीं आता क्योंकि वह कांता की माता के जन्मदिन की खुशियों में व्यस्त रहता है। कांता पर वह अपनी पूरी दौलत तक लुटा देता है, अब मोहन के लिए सिर्फ कांता और उसका परिवार ही अपने हैं बाकी के सब बेकार।

कुछ दिनों के बाद मोहन बहुत बीमार पड़ जाता है धीरे -धीरे यह बीमारी कुष्ठ रोग में बदल जाती है , इस समय मोहन के पास अपने इलाज तक के लिए पैसे नहीं है और वह कांता और उसके परिवार द्वारा हर दिन तिरस्कृत होता रहता है, यहाँ तक कि कांता उसको एक कमरे में बंद करके रखती है, उसका इलाज नहीं करवाते और खाने को घर का बचा हुआ खाना देते हैं।

मोहन को अपने किये गए हर व्यवहार पर पछतावा होता है और आत्मग्लानि में वह अपने परम मित्र, माता और पत्नी चंद्रा को याद करता रहता है। धीरे -धीरे मोहन अँधा हो जाता है, फिर एक दिन कांता और उसका परिवार मोहन को घर से निकाल  देते हैं। मोहन सड़क पर दर -दर भटकता रहता है, खाने के लिए वह भीख मांगे पर मज़बूर हो जाता है।

एक दिन मोहन की मुलाकात चंद्रा और बालू से होती है, पहले वो वह एक दूसरे को नहीं पहचानते फिर जब पता चलता है तो बालू उसको अपने साथ घर ले जाता है और उसका इलाज करवाता है।  मोहन को बालू से पता चलता है  एक विमान दुर्घटना में कांता की मौत का। मोहन चंद्रा का पुनःविवाह बालू से करवाता है क्योकि बालू एक बेहतर और सुलझा हुआ इंसान है। सके बाद वह बालू से एक ख्वाइश जाहिर करता है कि उसके मरने के बाद उसकी एक कोढ़ के साथ मूर्ति बनवायी जाये जो कि सभी को जीवन में आदर्शों के होने का एक सन्देश देगी।

यह याद करके बालू मोहन की मूर्ति को देखता है और सभी को जीवन के आदर्शों के बारे में बताता है और इसी के साथ फिल्म का अंत हो जाता है।   

Songs & Cast – इस फिल्म को संगीतकार सी ऐस जयरमन ने 10 बेहद सुरीले गानों से सजाया है – “Aalai Aaalai Paarkirrai அலாய் ஆலை பார்கிராய்”, “Kutram Purindhavan Vaazhkaiyil Nimmadhi குத்ரம் பூரிந்தவன் வாஸ்கைல் நிம்மதி” , “Thannai Arindhu தன்னாய் அரிந்து”, “Pengale Ulaga Kangale பெங்கலே உலாகா கங்கலே”, ” Maalai Itta Mannan Yaaro மலை இட்டா மன்னன் யாரோ”,  “Tatti Parithaar En Vaazhvai தட்டி பரிதார் என் வாஸ்வாய்”, “Kadhavai Saathadi கதவாய் சாதாதி”, ” Aalaiyin Sangge Nee Oothaayo ஆலைன் சாங்கே நீ ஓதாயோ” और इन गानों  को आवाज़ दी है खुद सी ऐस जयरमन और टी वी रथिनम, के पी कोमला , टी एस भागवती और एम एल वसंत कुमारी ने। 

इस फिल्म में एम आर राधाकृष्णनन (मोहन सुंदरम ), श्रीरंजनी (चंद्रा ), एस एस राजेंद्रन (बालू ), मदुरई नरसिम्हा आचार्य राजम (कांता ) आदि अन्य कलाकारों ने अपने अभिनय से फिल्म को एक ब्लॉक बस्टर फिल्म में तब्दील किया।  

इस फिल्म की अवधि 2  घंटे और 30 मिनट है (150 मिनट्स) और फिल्म का प्रोडक्शन Perumal  Mudaliar of National Pictures ने किया है। 

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