योगी वेमना एक जीवनी पर आधारित फिल्म है जो संत कवि वेमना के जीवन को दर्शाती है, जो तेलुगु भाषा में अपनी दार्शनिक और भक्ति कविताओं के लिए जाने जाते थे। फिल्म का निर्देशन और निर्माण के.वी. रेड्डी ने किया था, जिन्होंने कमलाकारा कामेश्वर राव के साथ पटकथा भी लिखी थी। फिल्म में वी. नागय्या ने वेमना की भूमिका निभाई, जिन्होंने संगीत भी तैयार किया और फिल्म में कई गाने भी गाए। यह फ़िल्म 10 अप्रैल 1947 को रिलीज़ हुई थी और इसे इसके कलात्मक और तकनीकी पहलुओं के लिए आलोचनात्मक प्रशंसा मिली थी।
![Movie Nurture: Yogi Vemana](https://movienurture.com/wp-content/uploads/2023/09/2-16.jpg)
स्टोरी लाइन
फिल्म की कहानी वेमना के एक सुखवादी राजकुमार से एक विनम्र और प्रबुद्ध कवि में परिवर्तन को दर्शाती है, जो सांसारिक सुखों को त्याग देता है और सत्य की तलाश में भटकता है। फिल्म शुरू होती है वेमना से जो एक धनी परिवार में जन्म लेता है और बढ़ा होकर शिक्षा लेने के लिए एक मुनि के पास जाता है, मगर उसको कोई भी शिक्षा नहीं दे पाता , मगर एक दिन वेमना अपने शिक्षक के साथ जा रहा होता है तो रास्ते में हुयी एक गलती की सज़ा के रूप में शिक्षक उसको एक चॉक देते हैं और चट्टान पर राम लिखने को बोलते हैं।
अपनी गलती को सुधारने वेमना पूरी शिद्दत से लिखने शुरू करता है चॉक ख़तम हो जाने के बाद भी वह लिखता रहता है अपनी उँगली की मदद से। शाम को जब शिक्षक आते हैं तो देखते हैं कि वेमना की उंगली लिखते लिखते गायब हो चुकी है। इस घटना के बाद वेमना की जिंदगी बदल जाती है और वह सब कुछ त्याग कर एक कवि बन गए।
फिल्म में वेमना की कई कविताएँ शामिल हैं, जो अपनी सादगी, ज्ञान और सामाजिक प्रासंगिकता के लिए जानी जाती हैं। कुछ कविताएँ वी. नागय्या द्वारा अपनी मधुर आवाज़ में गाई गयी हैं, जबकि अन्य को संवाद या कथन के रूप में सुनाया गया है।
![Movie Nurture: Yogi Vemana](https://movienurture.com/wp-content/uploads/2023/09/1-16.jpg)
फिल्म में कई दृश्य अपील करते हैं, जिसका श्रेय मार्कस बार्टले की सिनेमैटोग्राफी को जाता है, जिन्होंने नाटकीय प्रभाव पैदा करने के लिए लो-एंगल शॉट्स, डीप फोकस और काइरोस्कोरो लाइटिंग जैसी नवीन तकनीकों का इस्तेमाल किया। जैसे गुफा की ओर जाने वाले रास्ते के दोनों ओर भक्तों की एक बड़ी भीड़ संत के अंतिम दर्शन के लिए खड़ी है, जो ‘जीव समाधि’ प्राप्त करने के लिए वहां जाने वाले हैं। भीड़ में एक वृद्ध दंपत्ति भी हैं – संत के बुजुर्ग भाई-भाभी और उनके बचपन के दोस्त. धर्मपरायण व्यक्ति चेहरे पर सौम्य मुस्कान के साथ अंदर आता है, अपने रिश्तेदारों के सामने कुछ सेकंड के लिए रुकता है मानो बता रहा हो कि उसने उन्हें पहचान लिया है और फिर वैराग्य की भावना के साथ आगे बढ़ता है। हालाँकि, उसका बचपन का दोस्त उस तक पहुँच जाता है। दाढ़ी वाले साधु ने उसे गले लगा लिया और दुनिया छोड़कर गुफा में प्रवेश कर गया, यह योगी वेमना का आखिरी दृश्य बेहद संवेदनशील था।
फिल्म में सहायक कलाकारों की भी मजबूत भूमिका है, जैसे अभिराम के रूप में मुदिगोंडा लिंगमूर्ति, वेमना के मित्र और शिष्य, दोराईस्वामी के रूप में एम. वी. राजम्मा, ज्योति के रूप में पार्वतीबाई, पद्मनाभम के रूप में बेजवाड़ा राजरत्नम, वेमना के बहनोई , और ज्योति की बेटी के रूप में बेबी कृष्णावेनी।
यह फिल्म तेलुगु सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है और वी. नागय्या के करियर में एक मील का पत्थर मानी जाती है, जिन्होंने एक अभिनेता, गायक और संगीतकार के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा साबित की।
Lights, camera, words! We take you on a journey through the golden age of cinema with insightful reviews and witty commentary.